चेहरे पैर उदासी को छाने नहीं दूंगा,
बेबशी का गीत मुक्कदर को गाने नहीं दूंगा.
बचपन से जो लुटा रहे है लोग,
उनको और खुशिया लुटाने नहीं दूंगा.
देना चाहते है जो मेरे जीवन को रौशनी,
उनकी आँखों को आंशु बहाने नहीं दूंगा.
तुम चले जयो तुम को जाना है जन्हा,
चाहत की परधि से बहार जाने नहीं दूंगा.
जितेन्द्र दिक्सित.
Saturday, March 7, 2009
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