****** आम का मुखोटा ******
पहले लूटा हमें खाश बनकर ,
अब आये पहन कर आम का मुखोटा।
बार बार बदलता है व्यान अपने ,
सीधा नहीं रह सकता बिन पेंदी का लौटा।
इसकी मीठी बातो मै इस बार फिर फसे ,
समझलो फिर भाग्य हमारा फूटा।
कितने घोटाले किये जनता ने नाकारा इन्हे,
किन्तु कुर्सी का मोह ना इनसे छूटा।
पहले लूटा हमें खाश बनकर ,
अब आये पहन कर आम का मुखोटा।
जितेन्द्र दीक्षित