Tuesday, March 18, 2014

****** आम का मुखोटा ******
पहले लूटा हमें खाश बनकर ,
अब आये पहन कर आम का मुखोटा। 

बार बार बदलता है व्यान अपने ,
सीधा नहीं रह सकता बिन पेंदी का लौटा। 

इसकी मीठी बातो मै इस बार फिर फसे ,
समझलो फिर भाग्य हमारा फूटा। 

कितने घोटाले किये जनता ने नाकारा इन्हे,
किन्तु कुर्सी का मोह ना इनसे छूटा। 

पहले लूटा हमें खाश बनकर ,
अब आये पहन कर आम का मुखोटा। 

जितेन्द्र दीक्षित
*********सियासत मै***********
नौकरी छोड़ी बड़े सपनो कि आदत मै,
दिल्ली छोड़ के भागा दिल्ली कि चाहत मै। 
धर देता है धरना कंही भी वागी है ,
शक होता है मुझे इसकी वगबत मै। 
लगा देता है मनगढंत आरोप किसी पर भी ,
लोग फस जाते है नकली शराफत मै। 
जिन्हे गाली दे दे कर ये नेता बना ,
उनकी गोद मै बैठ कर कहेगा चलता है सियासत मै। 

जितेन्द्र दीक्षित।